अजीब जिंदगी है मेरी,
किसी ना मिलने वाले प्यार में खोई हुई है,
रोज मेरे चारो ओर उजड़ते है बसेरे,
उनकी तरफ आँख मूंदी हुई है।
फेहरिस्त ज्यादा लंबी नहीं है,
सर्वप्रथम एक किसान आता है,
हर वक़्त जमीन पर चोट करता है,
पता न किसे अपने स्वर सुनाना चाहता है।
बाद में एक युवापन आता है,
सपनो में खोयी जिंदगी कोई उसने देखी हुई है,
साल-दर साल रपिये बटोरने में गुजर-वाकर,
उस जिंदगी को पाने की जिम्मेदारी उसने मुझे सौंपी हुई है।
ठीक बाद मे कुछ नेता संग पत्रकार आते है,
अन्य सपना ‘एक बेहतर कल’ का दे जाते है,
अजीब नजारा पेश करते है,
‘आज’ जलाते है, फिर उसकी राख पे ये ‘कल’ उगाते है।
अंत में कुछ लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराते है,
मुँह पे मुखौटे लगा परिवार-जन बन मेरे करीब आते है,
बातों के समां में अपना मतलब साधते है,
इधर मतलब पूर्ण, उधर अंतर्ध्यान हो जाते है।
कहानी जिंदगी की कुछ भी हो,
कविताओ में वो मुकम्मल नहीं है,
ख्याल की सपने थोड़े हसीन हो,
शायद इसलिए आँखें मूंदी है।
Another beautiful post
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Thanks.
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